पूजा कक्ष/प्रार्थना कक्ष/उपासना कक्ष/ध्यान कक्ष : पूजाकक्ष हमेशा उत्तर – पूर्व (ईशान ) दिशा में ही बनाना चाहिये यहाँ पर पूजा कक्ष सर्वोत्तम रहता है | देव मूर्ति का मुख पश्चिम दिशा में और और पूजा करने वाले का मुख पूर्व दिशा में होना एक आदर्श स्तिथि होती है | देव मूर्ति का मुख उत्तर और पूर्व दिशा में भी कर सकते हैं परन्तु देवमूर्ति का मुख दक्षिण दिशा में नहीं करना चाहिये उससे पूजा करने वाले को उत्तर दिशा में मुख करके पूजा करनी पड़ती ये स्तिथि शुभ नहीं रहती है | पूजा का स्थान बीम/छज्जा/ या पट्टी के नीचे तथा सीढ़ियों के नीचे नहीं होना चाहिये | बैडरूम या शयन कक्ष में भी पूजा का स्थान नहीं होना चाहिये अन्य धर्मों के व्यक्तियों के लिये भी पूजा कक्ष , प्रार्थना कक्ष , ध्यान कक्ष , उपासना कक्ष आदि भी उत्तर -पूर्व किनारे पर ही बनाना चाहिये एवं अगर किसी भी देवता या भगवान्, ईश्वर की मूर्ति स्थापित करनी हो तो वो भी कभी भी दक्षिण की तरफ मुख करके नहीं लगानी चाहिये एवं पूजा या प्रार्थना करने वाले का मुख उत्तर की ओर नहीं होना चाहिये ये स्तिथि शुभ नहीं रहती है | मुसलमान भाइयों को भी अपना उपासना कक्ष उत्तर – पूर्व में ही बनाना चाहिये , हालाँकि वे मूर्ति की उपासना नहीं करते हैं परन्तु भारत में वे परमात्मा , खुदा की प्रार्थना पश्चिम की ओर मुख करके ही करते हैं क्योंकि उनकी एकाग्रता का केंद्र मक्का भारत के पश्चिम में है | उन देशों में जहाँ से मक्का पूर्व दिशा में पड़ता है वहां के लोग पूर्व दिशा में मुख करके खुदा की इबादत करते हैं , एवं जहाँ से मक्का उत्तर दिशा में पड़ता है वो लोग उत्तर दिशा में मुख करके इबादत करते हैं तथा जहाँ से मक्का मदीना जिस दिशा में पड़ते हैं वहां से उसी दिशा में मुख करके खुदा की उपासना या इबादत करनी चाहिये | पूजा कक्ष , उपासना कक्ष , प्रार्थना कक्ष , ध्यान कक्ष को हमेशा भूमि स्तर (ग्राउंड फ्लोर ) पर ही बनाना चाहये ये शुभ रहता है |
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