माता वैभव लक्ष्मी व्रत
माता वैभव लक्ष्मी के व्रत की यह खूबी है कि, इस व्रत को स्त्री और पुरुष दोनों में से कोई भी कर सकता है| इस व्रत कि एक और विशेषता है कि इस व्रत को करने से उपवासक को धन और सुख-समृ्द्धि दोनों की प्राप्ति होती है| घर-परिवार में स्थिर लक्ष्मी का वास बनाये रखने में यह व्रत विशेष रुप से शुभ माना जाता है|
अगर कोई व्यक्ति माता वैभव लक्ष्मी का व्रत करने के साथ साथ लक्ष्मी श्री यंत्र को स्थापित कर उसकी भी नियमित रुप से पूजा-उपासना करता है, तो उसके व्यापार में वृ्द्धि ओर धन में बढोतरी होती है| व्यापारिक क्षेत्रों में दिन दुगुणी रात चौगुणी वृ्द्धि करने में माता वैभव लक्ष्मी व्रत और लक्ष्मी श्री यंत्र कि पूजा विश्लेष लाभकारी रहती है| इस व्रत को करने का उद्देश्य दौलतमंद होना है| श्री लक्ष्मी जी की पूजा में विशेष रुप से श्वेत वस्तुओं का प्रयोग करना शुभ कहा गया है| पूजा में श्वेत वस्तुओं का प्रयोग करने से माता शीघ्र प्रसन्न होती है|
इस व्रत को करते समय शास्त्रों में कहे गये व्रत के सभी नियमों का पालन करना चाहिए| और व्रत का पालन भी पूर्ण विधि-विधान से करना चाहिए| व्रत करते समय ध्यान देने योग्य कुछ सामान्य नियम निम्नलिखित है |
इस व्रत को यूं तो स्त्री और पुरुष दोनों ही कर सकते है| इसमें भी कन्याओं से अधिक सुहागिन स्त्रियों को इस व्रत के शुभ फल प्राप्त होने के विषय में कहा गया है| इस व्रत को प्रारम्भ करने के बाद नियमित रुप से 21 शुक्रवारों तक करना चाहिए |
व्रत का प्रारम्भ करते समय व्रतों की संख्या का संकल्प अवश्य लेना चाहिए| और संख्या पूरी होने पर व्रत का उद्धापन अवश्य करना चाहिए | उध्यापन न करने पर व्रत का फल समाप्त होता है |
व्रत के दिन माता लक्ष्मी जी की पूजा उपासना करने के साथ साथ पूरे दिन माता का ध्यान और स्मरण करना चाहिए| व्रत के दिन की अवधि में दिन के समय में सोना नहीं चाहिए| और न ही अपने दैनिक कार्य छोडने चाहिए| आलसी भाव को स्वयं से दूर रखना चाहिए| आलसी व्यक्तियों के पास लक्ष्मी जी कभी नहीं आती है | साथ ही प्रात: जल्दी उठकर पूरे घर की सफाई करनी चाहिए| जिस घर में साफ-सफाई का ध्यान नहीं रखा जाता है, उस घर-स्थान में देवी लक्ष्मी निवास नहीं करती है | लक्ष्मी पूजा में दक्षिणा और पूजा में रखने के लिये धन के रुप में सिक्कों का प्रयोग करना चाहिए| नोटों का प्रयोग करना शुभ नहीं माना जाता है |
माता वैभव लक्ष्मी व्रत विधि :
व्रत को शुरु करने से पहले प्रात:काल में शीघ्र उठकर, नित्यक्रियाओं से निवृ्त होकर, पूरे घर की सफाई कर, घर को गंगा जल से शुद्ध करना चाहिए, और उसके बाद ईशान कोण की दिशा में माता लक्ष्मी की चांदी की प्रतिमा या तस्वीर लगानी चाहिए| साथ ही श्री यंत्र भी स्थापित करना चाहिए श्री यंत्र को सामने रख कर उसे प्रणाम करना चाहिए, और अष्टलक्ष्मियों का नाम लेते हुए, उन्हें प्रणाम करना चहिए | अष्टलक्ष्मियों के नाम इस प्रकार हैं : 1| श्री धनलक्ष्मी अथवा वैभव लक्ष्मी 2| गजलक्ष्मी 3| अधिलक्ष्मी 4| विजयालक्ष्मी 5| ऎश्वर्यलक्ष्मी 6| वीरलक्ष्मी 7| धान्यलक्ष्मी 8| संतानलक्ष्मी आदि , इसके पश्चात मंत्र बोलना चाहिए |
मंत्र :
या रक्ताम्बुजवासिनी विलासिनी चण्डांशु तेजस्विनी ।
या रक्ता रुधिराम्बरा हरिसखी या श्री मनोल्हादिनी ॥
या रत्नाकरमन्थनात्प्रगटिता विष्णोस्वया गेहिनी ।
सा मां पातु मनोरमा भगवती लक्ष्मीश्च पद्मावती ॥
जो उपवासक मंत्र बोलने में असमर्थ हों, वे इसका अर्थ बोल सकते है|
उपरोक्त मंत्र का अर्थ :
जो लाल कमल में रहती है, जो अपूर्व कांतिवाली है, जो असह्य तेजवाली है, जो पूर्ण रूप से लाल है, जिसने रक्तरूप वस्त्र पहने है, जो भगवान विष्णु को अति प्रिय है, जो लक्ष्मी मन को आनंद देती है, जो समुद्रमंथन से प्रकत हुई है, जो विष्णु भगवान की पत्नी है, जो कमल से जन्मी है और जो अतिशय पूज्य है, वैसी हे लक्ष्मी देवी! आप मेरी रक्षा करें|
इसके बाद पूरे दिन व्रत कर दोपहर के समय चाहें, तो फलाहार करना चाहिए और रात्रि में एक बार भोजन करना चाहिए| सायं काल में सूर्यास्त होने के बाद प्रदोषकाल समय स्थिर लग्न समय में माता लक्ष्मी का व्रत समाप्त करना चाहिए|
पूजा करने के बाद मात वैभव लक्ष्मी जी कि व्रत कथा का श्रवण करना चाहिए| व्रत के दिन खीर से माता को भोग लगाना चाहिए| और धूप, दीप, गंध, और श्वेत फूलों से माता की पूजा करनी चाहिए| सभी को खीर का प्रसाद बांटकर स्वयं खीर जरूर ग्रहण करनी चाहिए |
वैभव लक्ष्मी के व्रत की महिमा :
भारत के दक्षिण भारतीय प्रदेशों में इस व्रत को वैभवा लक्ष्मी व्रतम के नाम से जाना जाता है| यह व्रत विशेष रुप से दक्षिण भारत में प्रचलित है| हिन्दू धर्म में महालक्ष्मी की पूजा विशेष रुप से की जाती है| महालक्ष्मी देवी अर्थ की देवि हे| बिना अर्थ के व्यक्ति अपने कर्तव्यों का पालन करने में असमर्थ रहता है| वैसे तो लक्ष्मी पूजा प्रतिदिन की जानी चाहिए| परन्तु जब वैभव लक्ष्मी व्रत को करने के साथ-साथ घर में देवी लक्ष्मी की पूजा -उपासना की जाती है, तो वह निसंदेह सफल होती है| आज के युग में जिनके पास धन है| वही सभी सुख-सुविधाओं से युक्त है|
कई बार तो धनी होने पर ही व्यक्ति को योग्य माना जाता है| धनी व्यक्तियों को समाज में जो मान -सम्मान प्राप्त है, वह आज किसी से छुपा नहीं है |
श्री माँ वैभव लक्ष्मी माता व्रत कथा
एक समय की बात है कि एक शहर में एक शीला नाम की स्त्री अपने पति के साथ रहती थी । शीला स्वभाव से धार्मिक प्रवृ्ति की थी । और भगवान की कृ्पा से उसे जो भी प्राप्त हुआ था, वह उसी में संतोष करती थी । शहरी जीवन वह जरूर व्यतीत कर रही थी, परन्तु शहर के जीवन का रंग उसपर नहीं चढा था । भजन-कीर्तन, भक्ति-भाव और परोपकार का भाव उसमें अभी भी था ।
वह अपने पति और अपनी ग्रहस्थी में प्रसन्न थी । आस-पडौस के लोग भी उसकी सराहना किया करते थें । देखते ही देखते समय बदला और उसका पति कुसंगति का शिकार हो गया । वह शीघ्र अमीर होने का ख्वाब देखने लगा । अधिक से अधिक धन प्राप्त करने के लालच में वह गलत मार्ग पर चल पडा, जीवन में रास्ते से भटकने के कारण उसकी स्थिति भिखारी जैसी हो गई । बुरे मित्रों के साथ रहने के कारण उसमें शराब, जुआ, रेस और नशीले पदार्थों का सेवन करने की आदत उसे पड गई । इन गंदी आदतों में उसने अपना सब धन गंवा दिया ।
अपने घर और अपने पति की यह स्थिति देख कर शीला बहुत दु:खी रहने लगी । परन्तु वह भगवान पर आस्था रखने वाली स्त्री थी । उसे अपने देव पर पूरा विश्वास था । एक दिन दोपहर के समय उसके घर के दरवाजे पर किसी ने आवाज दी । दरवाजा खोलने पर सामने पडौस की माता जी खडी थी । माता के चेहरे पर एक विशेष तेज था । वह करूणा और स्नेह कि देवी नजर आ रही थ । शीला उस मांजी को घर के अन्दर ले आई । घर में बैठने के लिये कुछ खास व्यवस्था नहीं थी । शीला ने एक फटी हुई चादर पर उसे बिठाया । माँजी बोलीं- क्यों शीला! मुझे पहचाना नहीं? हर शुक्रवार को लक्ष्मीजी के मंदिर में भजन-कीर्तन के समय मैं भी वहाँ आती हूँ ।’ इसके बावजूद शीला कुछ समझ नहीं पा रही थी, फिर माँजी बोलीं- ‘तुम बहुत दिनों से मंदिर नहीं आईं अतः मैं तुम्हें देखने चली आई ।
माँजी के अति प्रेमभरे शब्दों से शीला का हृदय पिघल गया ।माँजी के व्यवहार से शीला को काफी संबल मिला और सुख की आस में उसने माँजी को अपनी सारी कहानी कह सुनाई। कहानी सुनकर माँजी ने कहा- माँ लक्ष्मीजी तो प्रेम और करुणा की अवतार हैं । वे अपने भक्तों पर हमेशा ममता रखती हैं । इसलिए तू धैर्य रखकर माँ लक्ष्मीजी का व्रत कर । इससे सब कुछ ठीक हो जाएगा ।’ शीला के पूछने पर माँजी ने उसे व्रत की सारी विधि भी बताई । माँजी ने कहा- ‘बेटी! माँ लक्ष्मीजी का व्रत बहुत सरल है । उसे ‘वरदलक्ष्मी व्रत’ या ‘वैभवलक्ष्मी व्रत’ कहा जाता है । यह व्रत करने वाले की सब मनोकामना पूर्ण होती है । वह सुख-संपत्ति और यश प्राप्त करता है ।
शीला यह सुनकर आनंदित हो गई । शीला ने संकल्प करके आँखें खोली तो सामने कोई न था । वह विस्मित हो गई कि माँजी कहाँ गईं? शीला को तत्काल यह समझते देर न लगी कि माँजी और कोई नहीं साक्षात् लक्ष्मीजी ही थीं ।
दूसरे दिन शुक्रवार था । सबेरे स्नान करके स्वच्छ कपड़े पहनकर शीला ने माँजी द्वारा बताई विधि से पूरे मन से व्रत किया । आखिरी में प्रसाद वितरण हुआ । यह प्रसाद पहले पति को खिलाया । प्रसाद खाते ही पति के स्वभाव में फर्क पड़ गया । उस दिन उसने शीला को मारा नहीं, सताया भी नहीं । उनके मन में ‘वैभवलक्ष्मी व्रत’ के लिए श्रद्धा बढ़ गई ।
शीला ने पूर्ण श्रद्धा-भक्ति से इक्कीस शुक्रवार तक ‘वैभवलक्ष्मी व्रत’ किया । इक्कीसवें शुक्रवार को माँजी के कहे मुताबिक उद्यापन विधि कर के सात स्त्रियों को ‘वैभवलक्ष्मी व्रत’ की सात पुस्तकें उपहार में दीं । फिर माताजी के ‘धनलक्ष्मी स्वरूप’ की छबि को वंदन करके भाव से मन ही मन प्रार्थना करने लगीं- ‘हे माँ धनलक्ष्मी! मैंने आपका ‘वैभवलक्ष्मी व्रत’ करने की मन्नत मानी थी, वह व्रत आज पूर्ण किया है । हे माँ! मेरी हर विपत्ति दूर करो । हमारा सबका कल्याण करो । जिसे संतान न हो, उसे संतान देना । सौभाग्यवती स्त्री का सौभाग्य अखंड रखना । कुँआरी लड़की को मनभावन पति देना । जो आपका यह चमत्कारी वैभवलक्ष्मी व्रत करे, उनकी सब विपत्ति दूर करना । सभी को सुखी करना । हे माँ, आपकी महिमा अपार है । ऐसा बोलकर लक्ष्मीजी के ‘धनलक्ष्मी स्वरूप’ की छबि को प्रणाम किया ।
व्रत के प्रभाव से शीला का पति अच्छा आदमी बन गया और कड़ी मेहनत करके व्यवसाय करने लगा । उसने तुरंत शीला के गिरवी रखे गहने छुड़ा लिए । घर में धन की बाढ़ सी आ गई । घर में पहले जैसी सुख-शांति छा गई । ‘वैभवलक्ष्मी व्रत’ का प्रभाव देखकर मोहल्ले की दूसरी स्त्रियाँ भी विधिपूर्वक ‘वैभवलक्ष्मी व्रत’ करने लगीं ।
माँ वैभव लक्ष्मी जी की आरती :
ॐ जय लक्ष्मी माता, मैया जय लक्ष्मी माता,
तुमको निशदिन सेवत, हरी विष्णु विधाता | ॐ जय लक्ष्मी माता…
उमा रमा ब्रह्मणि तुम्ही जगमाता,
सूर्य चन्द्रमा ध्यावत नारद ऋषि गाता | ॐ जय लक्ष्मी माता…
दुर्गा रूप निरंजनी, सुख सम्पति दाता,
जो कोई तुमको ध्यावत, रिद्धि सिद्धि धन पाता | ॐ जय लक्ष्मी माता…
तुम पातळ निवासिनी, तुम ही शुभ दाता,
कर्म प्रभाव् प्रकाशिनी, भव निधि की त्राता | ॐ जय लक्ष्मी माता…
जिस घर में तुम रहती, सुब सद्गुण आता,
सुब संभव हो जाता, मन नहीं घबराता | ॐ जय लक्ष्मी माता…
तुम बिन यज्ञ न होवे, वस्त्र न कोई पाता,
खान पान का वैभव, सुब तुमसे आता | ॐ जय लक्ष्मी माता…
शुभ गुण मंदिर सुंदर, क्षीरोदधि जाता,
रतन चतुर्श्दुश तुन बिन, कोई नहीं पाता | ॐ जय लक्ष्मी माता…
महा लक्ष्मी जी की आरती, जो कोई नर गाता,
उर आनंद समाता, पाप उतर जाता | ॐ जय लक्ष्मी माता…
बोलो माता वैभव लक्ष्मी जी की जय!!