महामृत्युंजय मन्त्र साधना और प्रयोग

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यह मंत्र ऋषि मार्कंडेय को सबसे पहले प्राप्त हुआ था।
महामृत्युञ्जय मंत्र यजुर्वेद के रूद्र अध्याय में स्थित एक मंत्र है। इसमें शिव की स्तुति की गयी है।
इस मंत्र का सवा लाख बार निरंतर जप करने से आने वाली अथवा मौजूदा बीमारियां तथा अनिष्टकारी ग्रहों का दुष्प्रभाव तो समाप्त होता ही है, इस मंत्र के माध्यम से अटल मृत्यु तक को टाला जा सकता है।
यदि आपकी कुंडली में किसी भी तरह से मृत्यु दोष या मारकेश है तो इस मंत्र का जाप करें।
शास्त्रों के अनुसार इस मंत्र का जप करने के लिए सुबह 2 से 4 बजे का समय सबसे उत्तम माना गया है.
स्नान करते समय शरीर पर लोटे से पानी डालते वक्त इस मंत्र का लगातार जप करते रहने से स्वास्थ्य-लाभ होता है।
जब किसी की अकालमृत्यु किसी घातक रोग या दुर्घटना के कारण संभावित होती हैं तो इससे बचने का एक ही उपाय है – महामृत्युंजय मंत्र साधना।

मारकेश ग्रहों की दशा एवं अन्तर्दशा में महामृत्युंजय प्रयोग फलदायी है।
मृतसंजीवनी मंत्र :
ॐ हौं जूं सः ॐ भूर्भुवः स्वः ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्द्धनम्‌। उर्वारुकमिव बन्धनान्मृत्योर्मुक्षीय मामृतात्‌ ॐ स्वः भुवः ॐ सः जूं हौं ॐ।
देवता मंत्रों के अधीन होते हैं- मंत्रधीनास्तु देवताः।
महामृत्युंजय शिव षड्भुजा धारी हैं, जिनमें से चार भुजाओं में अमृत कलश रखते हैं, अर्थात् वे अमृत से स्नान करते हैं, अमृत का ही पान करते हैं एवं अपने भक्तों को भी अमृत पान कराते हुए अजर-अमर कर देते हैं। इनकी शक्ति भगवती अमृतेश्वरी हैं।
वेदोक्त मंत्र-
महामृत्युंजय का वेदोक्त मंत्र निम्नलिखित है –
त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्‌।
उर्वारुकमिव बन्धनान्मृत्योर्मुक्षीय माऽमृतात्‌ ॥
इस मंत्र में 32 शब्दों का प्रयोग हुआ है और
इसी मंत्र में ॐ’ लगा देने से 33 शब्द हो जाते हैं।

इसे ‘त्रयस्त्रिशाक्षरी या तैंतीस अक्षरी मंत्र कहते हैं। श्री वशिष्ठजी ने इन 33 शब्दों के 33 देवता अर्थात्‌ शक्तियाँ निश्चित की हैं
महामृत्युंजय मंत्र” भगवान शिव का सबसे बड़ा मंत्र माना जाता है।
हिन्दू धर्म में इस मंत्र को प्राण रक्षक और महामोक्ष मंत्र कहा जाता है।

मान्यता है कि प्रिय महामृत्युंजय मंत्र से शिवजी को प्रसन्न करने वाले जातक से मृत्यु भी डरती है। इस मंत्र को सिद्ध करने वाला जातक निश्चित ही मोक्ष को प्राप्त करता है।

इस मंत्र की शक्ति से जुड़ी कई कथाएं शास्त्रों और पुराणों में मिलती है जिनमें बताया गया है कि इस मंत्र के जप से गंभीर रुप से बीमार व्यक्ति स्वस्थ हो गए और मृत्यु के मुंह में पहुंच चुके व्यक्ति भी दीर्घायु का आशीर्वाद पा गए।

यही कारण है कि ज्योतिषी और पंडित बीमार व्यक्तियों को और ग्रह दोषों से पीड़ित व्यक्तियों को महामृत्युंजय मंत्र जप करवाने की सलाह देते हैं।

शिव को अति प्रसन्न करने वाला मंत्र है महामृत्युंजय मंत्र। लोगों कि धारणा है कि इसके जाप से व्यक्ति की मृत्यु नहीं होती परंतु यह पूरी तरह सही अर्थ नहीं है।
महामृत्युंजय का अर्थ है महामृत्यु पर विजय अर्थात् व्यक्ति की बार-बार मृत्यु ना हो। वह मोक्ष को प्राप्त हो जाए। उसका शरीर स्वस्थ हो, धन एवं मान की वृद्धि तथा वह जन्म मृत्यु के बंधन से मुक्त हो जाए।
महामृत्युञ्जय मंत्र यजुर्वेद के रूद्र अध्याय में स्थित एक मंत्र है। इसमें शिव की स्तुति की गयी है।
इस मंत्र का सवा लाख बार निरंतर जप करने से आने वाली अथवा मौजूदा बीमारियां तथा अनिष्टकारी ग्रहों का दुष्प्रभाव तो समाप्त होता ही है, इस मंत्र के माध्यम से अटल मृत्यु तक को टाला जा सकता है।

हमारे वैदिक शास्त्रों और पुराणों में असाध्य रोगों से मुक्ति और अकाल मृत्यु से बचने के लिए महामृत्युंजय जप करने का विशेष उल्लेख मिलता है।

महामृत्युंजय भगवान शिव को खुश करने का मंत्र है। इसके प्रभाव से इंसान मौत के मुंह में जाते-जाते बच जाता है, मरणासन्न रोगी भी महाकाल शिव की अद्भुत कृपा से जीवन पा लेता है।

बीमारी, दुर्घटना, अनिष्ट ग्रहों के प्रभावों से दूर करने, मौत को टालने और आयु बढ़ाने के लिए सवा लाख महामृत्युंजय मंत्र जप करने का विधान है।
यदि आपकी कुंडली में किसी भी तरह से मृत्यु दोष या मारकेश है तो इस मंत्र का जाप करें।

इस मंत्र का जप करने से किसी भी तरह की महामारी से बचा जा सकता है साथ ही पारिवारिक कलह, संपत्ति विवाद से भी बचाता है।

अगर आप किसी तरह की धन संबंधी परेशानी से जूझ रहें है या आपके व्यापार में घाटा हो रहा है तो इस मंत्र का जप करें।

इस मंत्र में असीमित शक्तियां है जिसके जप से ऐसी ध्वनियाँ व तरंगें उत्पन होती हैं जो आपको मृत्यु के भय से मुक्त कर देती हैं , इसीलिए इसे मोक्ष मंत्र भी कहा जाता है।

शास्त्रों के अनुसार इस मंत्र का जप करने के लिए सुबह 2 से 4 बजे का समय सबसे उत्तम माना गया है, लेकिन अगर आप इस वक़्त जप नहीं कर पाते हैं तो सुबह उठ कर स्नान कर साफ़ कपडे पहने फिर कम से कम पांच बार रुद्राक्ष की माला से इस मंत्र का जप करें।

स्नान करते समय शरीर पर लोटे से पानी डालते वक्त इस मंत्र का लगातार जप करते रहने से स्वास्थ्य-लाभ होता है।

दूध में निहारते हुए यदि इस मंत्र का कम से कम 11 बार जप किया जाए और फिर वह दूध पी लें तो यौवन की सुरक्षा भी होती है।

इस चमत्कारी मन्त्र का नित्य पाठ करने वाले व्यक्ति पर भगवान शिव की कृपा निरन्तंर बरसती रहती है ।

महारूद्र सदाशिव को प्रसन्न करने व अपनी सर्वकामना सिद्धि के लिए यहां पर पार्थिव पूजा का विधान है, जिसमें
मिटटी के शिर्वाचन पुत्र प्राप्ति के लिए, श्याली चावल के शिर्वाचन व अखण्ड दीपदान की तपस्या होती है।

शत्रुनाश व व्याधिनाश हेतु नमक के शिर्वाचन,
रोग नाश हेतु गाय के गोबर के शिर्वाचन,
दस विधि लक्ष्मी प्राप्ति हेतु मक्खन के शिर्वाचन

अन्य कई प्रकार के शिवलिंग बनाकर उनमें प्राण-प्रतिष्ठा कर विधि-विधान द्वारा विशेष पुराणोक्त व वेदोक्त विधि से पूज्य होती रहती है ||

भगवान शिव को केवल जल, पुष्प और बेलपत्र चढ़ाने से ही प्रसन्न हो जाने के कारण उन्हें आशुतोष भी कहा जाता है।

उनके अन्य स्वरूप अर्धनारीश्वर, महेश्वर, सदाशिव, अंबिकेश्वर, पंचानन, नीलकंठ, पशुपतिनाथ, दक्षिणमूर्ति आदि हैं।

जब किसी की अकालमृत्यु किसी घातक रोग या दुर्घटना के कारण संभावित होती हैं तो इससे बचने का एक ही उपाय है – महामृत्युंजय साधना।

यमराज के मृत्युपाश से छुड़ाने वाले केवल भगवान मृत्युंजय शिव हैं जो अपने साधक को दीर्घायु देते हैं।

अनिष्ट ग्रहों का निवारण मारक एवं बाधक ग्रहों से संबंधित दोषों का निवारण महामृत्युंजय मंत्र की आराधना से संभव है।

मान्यता है कि बारह ज्योतिर्लिगों के दर्शन मात्र से समस्त बारह राशियों संबंधित शुभ फलों की प्राप्ति होती है। काल संबंधी गणनाएं ज्योतिष का आधार हैं तथा शिव स्वयं महाकाल हैं, अत: विपरीत कालखंड की गति महामृत्युंजय साधना द्वारा नियंत्रित की जा सकती है।

जन्म पत्रिका में काल सर्पदोष, चंद्र-राहु युति से जनित ग्रहण दोष, मार्केश एवं बाधकेश ग्रहों की दशाओं में, शनि के अनिष्टकारी गोचर की अवस्था में महामृत्युंजय का प्रयोग शीघ्र फलदायी है। इसके अलावा विषघटी, विषकन्या, गंडमूल एवं नाड़ी दोष आदि अनेकानेक दोषों को निवारण करने की क्षमता इस मंत्र में है।

जप के लिए अलग-अलग मंत्रों का प्रयोग होता है। मंत्र में दिए अक्षरों की संख्या से इनमें विविधता आती है।

यह मंत्र निम्न प्रकार से है-

एकाक्षरी(1) मंत्र- ‘हौं’ ।

त्र्यक्षरी(3) मंत्र- ‘ॐ जूं सः’।

चतुराक्षरी(4) मंत्र- ‘ॐ वं जूं सः’।

नवाक्षरी(9) मंत्र- ‘ॐ जूं सः पालय पालय’।

दशाक्षरी(10) मंत्र- ‘ॐ जूं सः मां पालय पालय’।

(स्वयं के लिए इस मंत्र का जप इसी तरह होगा जबकि किसी अन्य व्यक्ति के लिए यह जप किया जा रहा हो तो ‘मां’ के स्थान पर उस व्यक्ति का नाम लेना होगा)

ॐ हौं जूं सः।
ॐ भूः भुवः स्वः ॐ त्रयम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्। उव्र्वारूकमिव बन्धनान्मृत्योर्मुक्षीय मामृतात्।।
ॐ स्वः भुवः भूः ॐ।
ॐ सः जूं हौं।

जानिए महामृत्युंजय मंत्र का जाप करते वक्त किस बातों का ध्यान रखना चाहिए—-

प्रत्यक्षं ज्योतिषं शास्त्रम्‌ अर्थात्‌ ज्योतिष प्रत्यक्ष शास्त्र है। फलित ज्योतिष में महादशा एवं अन्तर्दशा का बड़ा महत्व है। वृहत्पाराशर होराशास्त्र में अनेकानेक दशाओं का वर्णन है। आजकल विंशोत्तरी दशा का प्रचलन है।

मारकेश ग्रहों की दशा एवं अन्तर्दशा में महामृत्युंजय प्रयोग फलदायी है।

जन्म, मास, गोचर, अष्टक आदि में ग्रहजन्य पीड़ा के योग, मेलापक में नाड़ी के योग, मेलापक में नाड़ी दोष की स्थिति, शनि की साढ़ेसाती, अढय्या शनि, पनौती (पंचम शनि), राहु-केतु, पीड़ा, भाई का वियोग, मृत्युतुल्य विविध कष्ट, असाध्य रोग, त्रिदोषजन्य महारोग, अपमृत्युभय आदि अनिष्टकारी योगों में महामृत्युंजय प्रयोग रामबाण औषधि है।

शनि की महादशा में शनि तथा राहु की अनिष्टकारी अन्तर्दशा,

केतु में केतु तथा गुरु की अनिष्टकारी अन्तर्दशा,

रवि की महादशा में रवि की अनिष्टकारी अंतर्दशा,

चन्द्र की महादशा में बृहस्पति, शनि, केतु, शुक तथा सूर्य की अनिष्टकारी अन्तर्दशा,

मंगल तथा राहु की अनिष्टकारी अन्तर्दशा,

राहु की महादशा में गुरु की अनिष्टकारी अन्तर्दशा,

शुक्र की महादशा में गुरु की अनिष्टकारी अन्तर्दशा,

मंगल तथा राहु की अन्तर्दशा,

गुरु की महादशा में गुरु की अनिष्टकारी अंतर्दशा,

बुध की महादशा में मंगल-गुरु तथा शनि की अनिष्टकारी अन्तर्दशा आदि इस प्रकार मारकेश ग्रह की दशा अन्तर्दशा में सविधि मृत्युंजय जप, रुद्राभिषेक एवं शिवार्जन से ग्रहजन्य एवं रोगजन्य अनिष्टकारी बाधाएँ शीघ्र नष्ट होकर अभीष्ट फल की प्राप्ति होती है।

उपर्युक्त अनिष्टकारी योगों के साथ ही अभीष्ट सिद्धि, पुत्र प्राप्ति, राजपद प्राप्ति, चुनाव में विजयी होने, मान-सम्मान, धन लाभ, महामारी आदि विभिन्न उपद्रवों, असाध्य एवं त्रिदोषजन्य महारोगादि विभिन्न प्रयोजनों में सविधि प्रमाण सहित महामृत्युंजय जप से मनोकामना पूर्ण होती है।

विभिन्न प्रयोजनों में अनिष्टता के मान से 1 करोड़ 24 लाख, सवा लाख, दस हजार या एक हजार महामृत्युंजय जप करने का विधान उपलब्ध होता है।

मंत्र दिखने में जरूर छोटा दिखाई देता है,
किन्तु प्रभाव में अत्यंत चमत्कारी है।

देवता मंत्रों के अधीन होते हैं- मंत्रधीनास्तु देवताः।

मंत्रों से देवता प्रसन्न होते हैं। मंत्र से अनिष्टकारी योगों एवं असाध्य रोगों का नाश होता है तथा सिद्धियों की प्राप्ति भी होती है।

ऋग्वेद, यजुर्वेद, अथर्ववेद, तैत्तिरीय संहिता एवं निरुवतादि मंत्र शास्त्रीय ग्रंथों में *त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्द्धनम्‌ उर्वारुकमिव बन्धनान्मृत्योर्मुक्षीय माऽमृतात्‌।* उक्त मंत्र मृत्युंजय मंत्र के नाम से प्रसिद्ध है।

शिवपुराण में सतीखण्ड में इस मंत्र को ‘सर्वोत्तम’ महामंत्र’ की संज्ञान से विभूषित किया गया है-

मृत संजीवनी मंत्रों मम सर्वोत्तम स्मृतः।

इस मंत्र को शुक्राचार्य द्वारा आराधित ‘मृतसंजीवनी विद्या’ के नाम से भी जाना जाता है।

नारायणणोपनिषद् एवं मंत्र सार में- मृत्युर्विनिर्जितो यस्मात तस्मान्यमृत्युंजय स्मतः अर्थात्‌ मृत्यु पर विजय प्राप्त करने के कारण इन मंत्र योगों को ‘मृत्युंजय’ कहा जाता है।

सामान्यतः मंत्र तीन प्रकार के होते हैं-
वैदिक, तांत्रिक, एवं शाबरी।

इनमें वैदिक मंत्र शीघ्र फल देने वाले त्र्यम्बक मंत्र भी वैदिक मंत्र हैं।

मृत्युंजय मंत्र तीन प्रकार के हैं- पहला मंत्र और महामृत्युंजय मंत्र।

पहला मंत्र तीन व्यह्यति- भूर्भुवः स्वः से सम्पुटित होने के कारण मृत्युंजय,

दूसरा ॐ हौं जूं सः त्रिबीज और भूर्भुवः स्वः तीन व्याह्यतियों से सम्पुटित होने के कारण ‘मृतसंजीवनी’ तथा उपर्युक्त हौं जूं सः त्रिबीज तथा भूर्भुवः स्वः तीन व्याह्यतियों के प्रत्येक अक्षर के प्रारंभ में ॐ का सम्पुट लगाया जाता है।

इसे ही शुक्राचार्य द्वारा आराधित महामृत्युंजय मंत्र कहा जाता है।

इस प्रकार वेदोक्त ‘त्र्यम्बकं यजामहे’ मंत्र में ॐ सहित विविध सम्पुट लगने से उपर्युक्त मंत्रों की रचना हुई है।

उपर्युक्त तीन मंत्रों में

मृतसंजीवनी मंत्र

*ॐ हौं जूं सः ॐ भूर्भुवः स्वः ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्द्धनम्‌। उर्वारुकमिव बन्धनान्मृत्योर्मुक्षीय मामृतात्‌ ॐ स्वः भुवः ॐ सः जूं हौं ॐ।*

यह मंत्र सर्वाधिक प्रचलित एवं फल देने वाला माना गया है।

कुछ लघु मंत्र भी प्रयोग में आते हैं,

जैसे- त्र्यक्षरी अर्थात तीन अक्षरों वाला

*ॐ जूं सः*

पंचाक्षरी

*ॐ हौं जूं सः ॐ*

तथा

*ॐ जूं सः पालय पालय आदि*।

ॐ हौं जूं सः पालय पालय सः जूं हौं ॐ।
हौं जूं सः पालय पालय सः जूं हौं ॐ।

इस मंत्र के 11 लाख अथवा सवा लाख जप का मृत्युंजय कवच यंत्र के साथ जप करने का विधान भी है।

यंत्र को भोजपत्र पर अष्टगंध से लिखकर पुरुष के दाहिने तथा स्त्री के बाएँ हाथ पर बाँधने से असाध्य रोगों से मुक्ति होती है।

सर्वप्रथम यंत्र की सविधि विभिन्न पूजा उपचारों से पूजा-अर्चना करना चाहिए, पूजा में विशेष रूप से आंकड़े, एवं धतूरे का फूल, केसरयुक्त, चंदन, बिल्वपत्र एवं बिल्वफल, भांग एवं जायफल का नैवेद्य आदि।

मंत्र जप के पश्चात्‌ सविधि हवन, तर्पण एवं मार्जन करना चाहिए। मंत्र प्रयोग विधि सुयोग्य वैदिक विद्वान आचार्य के आचार्यत्व या मार्गदर्शन में सविधि सम्पन्न हो तभी यथेष्ठ की प्राप्ति होती है, अन्यथा अर्थ का अनर्थ होने की आशंका हो सकती है।

मृत्युंजय शिव का स्वरूप भगवान शिव की पांच कलाएं उपनिषदों में वर्णित हैं,
1- आनंद
2- विज्ञान
3- मन
4- प्राण
5- वाक।

शिव की आनंद नामक कला उनका महामृत्यंजय स्वरूप है। विज्ञानकला दक्षिणामूर्ति शिव,
मन कला कामेश्वर,
प्राणकला पशुपति शिव एवं
वाक कला भूतेशभावन शिव कहलाती है।

उपनिषदों की व्याख्या के आधार पर जीवन में आनंद प्राप्ति के निमित्त शिव के मृत्युंजय स्वरूप की आराधना आदि काल से प्रचलित है।

महामृत्युंजय शिव षड्भुजा धारी हैं, जिनमें से चार भुजाओं में अमृत कलश रखते हैं, अर्थात् वे अमृत से स्नान करते हैं, अमृत का ही पान करते हैं एवं अपने भक्तों को भी अमृत पान कराते हुए अजर-अमर कर देते हैं। इनकी शक्ति भगवती अमृतेश्वरी हैं।

वेदोक्त मंत्र-

महामृत्युंजय का वेदोक्त मंत्र निम्नलिखित है-

*त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्‌।
उर्वारुकमिव बन्धनान्मृत्योर्मुक्षीय माऽमृतात्‌ ॥*

इस मंत्र में 32 शब्दों का प्रयोग हुआ है और
इसी मंत्र में ॐ’ लगा देने से 33 शब्द हो जाते हैं।

इसे ‘त्रयस्त्रिशाक्षरी या तैंतीस अक्षरी मंत्र कहते हैं। श्री वशिष्ठजी ने इन 33 शब्दों के 33 देवता अर्थात्‌ शक्तियाँ निश्चित की हैं जो कि निम्नलिखित हैं।

इस मंत्र में
8 वसु,
11 रुद्र,
12 आदित्य
1 प्रजापति तथा
1 वषट को माना है।

मंत्र विचार :—

इस मंत्र में आए प्रत्येक शब्द को स्पष्ट करना अत्यंत आवश्यक है क्योंकि शब्द ही मंत्र है और मंत्र ही शक्ति है। इस मंत्र में आया प्रत्येक शब्द अपने आप में एक संपूर्ण अर्थ लिए हुए होता है और देवादि का बोध कराता है।

शब्द बोधक

‘त्र’ ध्रुव वसु ‘यम’ अध्वर वसु

‘ब’ सोम वसु ‘कम्‌’ वरुण

‘य’ वायु ‘ज’ अग्नि

‘म’ शक्ति ‘हे’ प्रभास

‘सु’ वीरभद्र ‘ग’ शम्भु

‘न्धिम’ गिरीश ‘पु’ अजैक

‘ष्टि’ अहिर्बुध्न्य ‘व’ पिनाक

‘र्ध’ भवानी पति ‘नम्‌’ कापाली

‘उ’ दिकपति ‘र्वा’ स्थाणु

‘रु’ भर्ग ‘क’ धाता

‘मि’ अर्यमा ‘व’ मित्रादित्य

‘ब’ वरुणादित्य ‘न्ध’ अंशु

‘नात’ भगादित्य ‘मृ’ विवस्वान

‘त्यो’ इंद्रादित्य ‘मु’ पूषादिव्य

‘क्षी’ पर्जन्यादिव्य ‘य’ त्वष्टा

‘मा’ विष्णुऽदिव्य ‘मृ’ प्रजापति

‘तात’ वषट

इसमें जो अनेक बोधक बताए गए है, ये बोधक देवताओं के नाम हैं।

शब्द की शक्ति-

शब्द वही हैं और उनकी शक्ति निम्न प्रकार से है-

शब्द शक्ति

‘त्र’ त्र्यम्बक, त्रि-शक्ति तथा त्रिनेत्र ‘य’ यम तथा यज्ञ

‘म’ मंगल ‘ब’ बालार्क तेज

‘कं’ काली का कल्याणकारी बीज ‘य’ यम तथा यज्ञ

‘जा’ जालंधरेश ‘म’ महाशक्ति

‘हे’ हाकिनो ‘सु’ सुगन्धि तथा सुर

‘गं’ गणपति का बीज ‘ध’ धूमावती का बीज

‘म’ महेश ‘पु’ पुण्डरीकाक्ष

‘ष्टि’ देह में स्थित षटकोण ‘व’ वाकिनी

‘र्ध’ धर्म ‘नं’ नंदी

‘उ’ उमा ‘र्वा’ शिव की बाईं शक्ति

‘रु’ रूप तथा आँसू ‘क’ कल्याणी

‘व’ वरुण ‘बं’ बंदी देवी

‘ध’ धंदा देवी ‘मृ’ मृत्युंजय

‘त्यो’ नित्येश ‘क्षी’ क्षेमंकरी

‘य’ यम तथा यज्ञ ‘मा’ माँग तथा मन्त्रेश

‘मृ’ मृत्युंजय ‘तात’ चरणों में स्पर्श

यह पूर्ण विवरण ‘देवो भूत्वा देवं यजेत’ के अनुसार पूर्णतः सत्य प्रमाणित हुआ है।

महामृत्युंजय के अलग-अलग मंत्र हैं। आप अपनी सुविधा के अनुसार जो भी मंत्र चाहें चुन लें और नित्य पाठ में या आवश्यकता के समय प्रयोग में लाएँ।

मंत्र निम्नलिखित हैं-

तांत्रिक बीजोक्त मंत्र-
ॐ भूः भुवः स्वः।
ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्‌।
उर्वारुकमिव बन्धनान्मृत्योर्मुक्षीय व मामृततस्वः भुवः भूः ॐ ॥

संजीवनी मंत्र अर्थात्‌ संजीवनी विद्या-
ॐ ह्रौं जूं सः।
ॐ भूर्भवः स्वः।
ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्‌।
उर्वारुकमिव बन्धनांन्मृत्योर्मुक्षीय माऽमृतात्‌।
स्वः भुवः भूः ॐ।
सः जूं ह्रौं ॐ ।

महामृत्युंजय का प्रभावशाली मंत्र-
ॐ ह्रौं जूं सः।
ॐ भूः भुवः स्वः।
ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्‌।
उर्वारुकमिव बन्धनान्मृत्योर्मुक्षीय माऽमृतात्‌।
स्वः भुवः भूः ॐ।
सः जूं ह्रौं ॐ