बौद्ध धर्म :- महात्मा बुद्ध का वास्तविक नाम सिद्धार्थ था । उनका जन्म लुंबिनी, कपिलवस्तु नेपाल के पास की जगह, में हुआ था । सिद्धार्थ के पिता शुद्धोदन शाक्यों के राजा थे । साहित्य के अनुसार, सिद्धार्थ की माता उनके जन्म के कुछ समय के बाद मर गयी थी तथा उनका लालन पालन उनके पिता के संरक्षण में ही हुआ था । सिद्धार्थ एक राजकुमार होते हुए भी किसी कारण से विचलित ही रहते थे , हालाँकि राजा ने उनको सभी दुखों से दूर रखने की कोशिश की मगर विधि के लेख को कौन टाल सकता है । उनको किसी की खोज रहती थी |
सिद्धार्थ जान गए कि एक दिन सब का जन्म होता है, सब का बुढ़ापा आता है, सब को बीमारी होती है, और एक दिन, सब की मौत होती है । उन्होने अपना धनवान जीवन, अपनी जाति, अपनी पत्नी, अपने बच्चे, सब को छोड़कर साधु का जीवन अपना लिया ताकि वे जन्म, बुढ़ापे, दर्द, बीमारी, और मौत के बारे में कोई उत्तर खोज पाएं । एक दिन वो सत्य की खोज में निकल गए | एवं बिहार में बोध गया में एक पीपल के पेड़ के नीचे समाधि लगाकर बैठ गए एवं एक दिन वैशाख की पूरे चाँद की रात थी जब बोध गया में एक पेड़ के नीचे ध्यान लगाके बैठे सिद्धार्थ ने परम को जाना एवं सत्य का बोध हुआ । महज़ 35 साल की उम्र में वे बुद्ध बन गए। यह घटना ईसा के 528 साल पहले की बताई जाती है। महात्मा बुद्ध ने ज्ञान प्राप्ति के बाद 4 सप्ताह तक बोधिवृक्ष (जिस वृक्ष के नीचे उन्हें ज्ञान प्राप्त हुआ) के नीचे बैठकर धर्म के स्वरूप पर चिंतन किया। इसके बाद वे धर्म का उपदेश देने निकल पड़े। आषाढ़ की पूर्णिमा आते-आते भगवान बुद्ध काशी के पास मृगदाव (अब सारनाथ) पहुंचे। यही वो जगह थी जहाँ उन्होंने पहला धर्मोपदेश दिया। बताया कि खुद को भूखा रखकर, अपने शरीर को कष्ट देकर प्रभु नहीं मिल सकते। बुद्ध मानते थे कि संसारी सुखों से दूर भागकर परम या बोध या ज्ञाननहीं मिल सकता। इंसान को अपने मन पर इतना काबू होना चाहिए कि वो संसार के बीच रहकर भी उससे अछूता रह सके। यही सच्चा योग है। 80 साल की उम्र तक बुद्ध जगह-जगह घूमकर लोगों को समझाते रहे, जगाते रहे। बुद्ध ने सबसे गूढ़ सच को इतनी सरलता से पेश किया कि हर धर्म और सम्प्रदाय के लोग उनसे जुड़ने लगे। बुद्ध के सन्देश, बौद्ध धर्म बन गए । बौद्ध धर्म के तीन मुख्य सम्प्रदाय हैं 1. थेरवाद 2. महायान 3. वज्रयान , इस वक्त दुनिया में लगभग 50 करोड़ लोग बौद्ध हैं। गौतम बुद्ध के गुज़रने के बाद, बौद्ध धर्म के अलग-अलग संप्रदाय उपस्थित हो गये हैं, परंतु इन सब के कुछ सिद्धांत मिलते हैं – प्रतीत्यसमुत्पाद, चार आर्य सत्य, आर्य अष्टांग मार्ग, बोधि। प्रतीत्यसमुत्पाद – प्रतीत्यसमुत्पाद का सिद्धांत कहता है कि कोई भी घटना केवल दूसरी घटनाओं के कारण ही एक जटिल कारण-परिणाम के जाल में विद्यमान होती है ।
प्राणियों के लिये, इसका अर्थ है कर्म और विपाक (कर्म के परिणाम) के अनुसार अनंत संसार का चक्र । क्योंकि सब कुछ अनित्य और अनात्मं (बिना आत्मा के) होता है, कुछ भी सच में विद्यमान नहीं है । हर घटना मूलतः शुन्य होती है । परंतु, मानव, जिनके पास ज्ञान की शक्ति है, तृष्णा को, जो दुःख का कारण है, त्यागकर, तृष्णा में नष्ट की हुई शक्ति को ज्ञान और ध्यान में बदलकर, निर्वाण पा सकते हैं । बुद्ध ईश्वर की सत्ता नहीं मानते क्योंकि दुनिया प्रतीत्यसमुत्पाद के नियम पर चलती है। पर अन्य जगह बुद्ध ने सर्वोच्च सत्य को अवर्णनीय कहा है । कुछ देवताओं की सत्ता मानी गयी है, पर वो ज़्यादा शक्तिशाली नहीं हैं
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