भवन में नवग्रहों का स्थान एवं प्रभाव : वास्तुशास्त्र के अनुसार गृहनिर्माण किया जाता है तब उसके साथ – साथ घर में नवग्रह भी विराजमान होते हैं | तथा वहां पर रहने वाले लोगों पर अपना प्रभाव डालते हैं | सूर्यदेव का स्थान उत्तर – पूर्व (ईशान कोण ) में पूजा या प्रार्थना कक्ष में होता है एवं ये घर में रहने वाले व्यक्तियों के स्वास्थ्य एवं नौकरी पर प्रभाव डालते हैं | चंद्रदेव का स्थान पूर्व दिशा में स्नानागार या स्नान कक्ष (बाथरूम) में होता है तथा ये ग्रह स्वामी के यश व् कीर्ति पर प्रभाव डालते हैं | मंगल देव अथवा कुज देव का स्थान दक्षिण – पूर्व (आग्नेय कोण ) में रसोई (किचिन) में होता है एवं ये व्यक्ति के चरित्र , बुद्धि, धन व् समृद्धि पर प्रभाव डालते हैं | घर के सामने के बरामदे या स्वागत कक्ष या मध्य के हाल में जहाँ अध्ययन एवं व्यापार के कार्य होते हैं वहां पर बुध देव का निवास होता है ये व्यक्ति के व्यापार एवं धंधे व् कार्य पर प्रभाव डालते हैं | उत्तर दिशा में स्तिथ कोष या उत्तर – पूर्व दिशा (ईशान कोण) जहाँ पर अध्यात्मक व् अन्य तरह का अध्ययन होता है वहां पर बृहस्पति देव या गुरु का निवास होता है गुरु व्यक्ति के मान सम्मान पर प्रभाव डालते हैं | शुक्र देव का स्थान दक्षिण से लेकर पश्चिम तक के क्षेत्र में जहाँ पर भोजन कक्ष , प्रसाधन कक्ष या विश्राम कक्ष आदि में होता है शुक्र व्यक्ति की वाकपटुता एवं
पति,पत्नी के सम्बन्धों व् व्यवहार पर प्रभाव डालते हैं | तथा शनि देव का निवास स्थान पश्चिम या पश्चिम-उत्तर के किनारे पर गौशाला में होता है शनि देव व्यक्ति की प्रशन्नता व् अचल संपत्ति व् धार्मिक बुद्धि पर प्रभाव डालता है | घर के प्रवेश द्वार के दाहिनी तरफ राहु का स्थान एवं बांयी तरफ केतु का स्थान होता है तथा भवन के चरों ओर रह कर उसकी रक्षा करते हैं राहु व्यक्ति की अजेय प्रतिष्ठा एवं मानसिक स्तिथि व् पेट के विकारों पर असर डालता है तथा केतु सम्पूर्ण पीढ़ी की वृद्धि व् सम्पन्नता पर प्रभाव डालता है |
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