वास्तुशास्त्र की ब्याख्या :-
वास्तुशास्त्र भवन निर्माण की एक अदभुत कला है जिसमें सभी दोषों को दूर करके भवन निर्माण की
सभी खूबियों का ध्यान रखते हुए निर्माण किया जाता है जिसमें रहने वाले के लिए सभी सुखों का अनुभव हो एवं आनंद की प्राप्ति होती हो तथा सम्पूर्ण विकास की प्राप्ति हो ऐसी कला को वास्तु शास्त्र कहते हैं | इसमें व्यक्ति भवन निर्माण में वास्तु के नियमों का पालन करते हुये पंचभूतों तथा पृथ्वी के चारों ओर आवर्त चुम्बकीये क्षेत्र का अधिकतम लाभ ले सके तथा एक आदर्श भवन का निर्माण कर सके |
वास्तुशास्त्र का ज्ञान ब्रह्मा एवं शिवजी से विश्वकर्मा एवं मय दानव को प्राप्त हुआ था | इस प्रकार की
शास्त्रीय मान्यता है | देवों के लिये भवनों के निर्माण की जिम्मेदारी विश्वकर्मा को एवं दानवों के लिये भवनों के निर्माण की जिम्मेदारी मय असुर को सोंपी गई | इस भूमि पर जो भी उत्पन्न होता है अथवा रूप को धारण कर लेता है वह सब वास्तु के रूप में ही जाना जाता है |
मत्स्य पुराण के अनुसार एक बार मंदरांचल पर्वत पर भगवान् शिव जगदम्बा -पार्वती के साथ विहार कर रहे थे तब माता पार्वती ने अपने हाथों से भगवान् शिव के नेत्रों को बंद कर दिया था |
जिससे संसार मेंमहान्धकार छा गया उसी समय एक विकराल मुखवाला क्रोध पारायण जटाधारी काले रंग का बड़े-बड़े बालों वाला अंधा पुरुष उत्पन्न होकर नाचने लगा | उसको देखकर माता पार्वती को बड़ा आश्चर्य हुआ तब भगवान् शिव ने माता से कहा की ये आपके पुत्र अन्धक हैं जोकि मेरे आँख बंद करने से उत्पन्न हुए हैं | उसी पुत्र को भगवान् शिव ने हिरण्याक्ष नाम के दानव को उसकी तपस्या से प्रसन्न होकर वरदान में दे दिया जोकि आगे चलकर अंधकासुर नाम से प्रसिद्द हुआ | इस प्रकार अंधकासुर ने करोड़ों वर्षों तक राज किया इसके पश्चात वह कुसंगति में पड़कर वेदमार्ग से विमुख हो गया एवं समस्त प्राणियों पर अत्याचार करने लगा तथा देवताओं को भी सताने लगा इससे भगवान् शिव ने उसको मार दिया | अंधकासुर से भगवान् शिवजी का जो युद्ध हुआ था उसमें भगवान् शिव के शरीर से पसीने की बूँद से वास्तु पुरुष की उत्पत्ति हुई एवं उत्पन्न होते ही वह भूख से व्याकुल हो गया एवं चीत्कार करने लगा तो समस्त देवताओं ने उसको भूमि पर उल्टे मुंह करके पटक दिया तथा ब्रह्मा जी ने वरदान दिया की पृथ्वी पर जो भी भवन निर्माण करवायेगा वो वास्तु की पूजा करेगा एवं वास्तु को भेंट चढ़ाएगा ,पूजन करेगा एवं भोग लगाएगा उसकी वास्तु देव रक्षा करेंगे एवं उसको भवन में सुख समृद्धि प्राप्त होगी एवं शांति तथा अच्छा स्वास्थ्य प्राप्त होगा | इस प्रकार से तभी से यह वास्तु देव की पूजा अर्चना का प्रचलन शुरू हुआ | वास्तु देव सम्पूर्ण पृथ्वी पर उत्तर – पूर्व में सिर करके तथा दक्षिण – पश्चिम में पैर करके उल्टी अवस्था में लेटे हुये हैं |
सम्पूर्ण विश्व पांच मूल और आधार भूत तत्वों से निर्मित हुआ है जिनको हम पंच महाभूत भी कहते हैं | ये पांच तत्व हैं , १. आकाश २. वायु ३. अग्नि ४. जल ५. पृथ्वी . पृथ्वी पर सभी प्राणी और हमारे द्वारा निर्माण किये जाने वाले सभी भवन आदि भी इन्हीं पांच तत्वों से बने हैं | इन पांच तत्वों से और व्यक्ति तथा उसके निवास व् कार्य करने के स्थानों के मध्य बाहरी , आंतरिक और सतत सम्बन्ध रहता है इस प्रकार इन पांच शक्तियों की प्रभाव क्षमता को समझ कर मनुष्य अपने मकानों की उचित परिरूप (डिजाईन) बनाकर अपनी दशा में सुधार कर सकता है | भवनों में रहने वालों पर भवन के मुख (मुंह) की दिशा, स्थान, व्यवस्था , आदि का उन पर सीधा प्रभाव डालती है | वास्तुशास्त्र के द्वारा एवं उसके नियमों का पालन करके हम एक ऐसे आदर्श भवन का निर्माण कर सकते हैं जिसमें मनुष्य , प्रकृति , दिशाओं , स्थान , आदि में सामंजस्य बैठाकर अधिकतम धनात्मक ऊर्जा का उपयोग कर सकताहैं जिसमें व्यक्ति प्राकृतिक तत्वों से सुरक्षा, आध्यात्मक आनंद, जीवन में संतोष ,शांति ,सुख समृद्धि, आदि प्राप्त करके आनंद से रह सकता है |