पंचांग एवं कैलेण्डर तथा उसके घटक :-
सप्ताह : सप्ताह में सात दिन होते हैं सप्ताह में सात वार इस प्रकार से हैं : रविवार, सोमवार, मंगलवार, बुधवार, गुरूवार,
शुक्रवार, शनिवार | इन सभी वारों के अलग – अलग स्वामी ग्रह होते हैं व् उनका अलग – अलग स्वभाव होता है |
वार का नाम | वार का स्वामी | प्रकृति एवं स्वभाव |
रविवार / Sunday | सूर्य / Sun | स्थिर व् क्रूर |
सोमवार /Monday | चन्द्र /Moon | चर व् सौम्य |
मंगलवार /Tuesday | मंगल /Mars | उग्र व् क्रूर |
बुधवार /Wednusday | बुध /Mercury | सम व् सौम्य |
गुरूवार /Thursday | गुरु /Jupiter | लघु व् सौम्य |
शुक्रवार /Friday | शुक्र /Venus | मृदु व् सौम्य |
शनिवार /Saturday | शनि /Saturn | तीक्ष्ण व् क्रूर |
चंद्रमास एवं सौरमास समय सारिणी
क्र. सं | चंद्रमास | अवधि अंग्रेजी मास में | सौर मास | अवधि अंग्रेजी मास में |
१. चैत्र | मार्च | अप्रैल | मेष मास | १३ अप्रैल से १४ मई |
२. वैशाख | अप्रैल | मई | वृष मास | १४ मई से १४ जून |
३. ज्येष्ठ | मई | जून | मिथुन मास | १४ जून से १६ जुलाई |
४. आषाढ़ | जून | जुलाई | कर्क मास | १६ जुलाई से १६ अगस्त |
५. श्रावण | जुलाई | अगस्त | सिंह मास | १६ अगस्त से १६ सितम्बर |
६. भाद्रपद | अगस्त | सितम्बर | कन्या मास | १६ सितम्बर से १७ अक्टूबर |
७. आश्विन | सितम्बर | अक्टूबर | तुला मास | १७ अक्टूबर से १६ नवम्बर |
८. कार्तिक | अक्टूबर | नवम्बर | वृश्चिक मास | १६ नवम्बर से १५ दिसंबर |
९. मार्गशीर्ष | नवम्बर | दिसंबर | धनु मास | १५ दिसंबर से १४ जनवरी |
१०. पौष | दिसंबर | जनवरी | मकर मास | १४ जनवरी से १२ फरवरी |
११. माघ | जनवरी | फरवरी | कुम्भ मास | १२ फरवरी से १३ मार्च |
१२. फाल्गुन | फरवरी | मार्च | मीन मास | १३ मार्च से १३ अप्रैल |
योग : सूर्यऔर चन्द्र की गति में जब १३ अंश २०’ कला का अंतर होता है तो एक योग होता | सूर्य पथ ३६० अंश का होता है अतः ३६०/१३ अंश २०’ कला = २७ योग बनाते हैं एक योग की अवधि ६० घटी अर्थार्त २४ घंटे की होती है | ये २७ सत्ताईस योग निम्न प्रकार से हैं :
१. विष्कुम्भ २. प्रीति ३. आयुष्मान ४. सौभाग्य ५. शोभन ६. अतिगंड ७. सुकर्मा ८. धृति ९. शूल १०. गंड ११. वृद्धि
१२. ध्रुव १३. व्याघात १४. हर्षण १५. वज्र १६. सिद्धि १७. व्यतिपात १८. वरियान १९. परिध २०. शिव २१. सिद्ध
२२. साध्य २३. शुभ २४. शुक्ल २५. ब्रम्हा २६. इन्द्र २७. वैधृति .
उपरोक्त २७ योगों में से ९ नौ योग विष्कुम्भ, अतिगंड, शूल, गंड, व्याघात, वज्र, व्यतिपात, परिध और वैधृति अशुभ माने गए हैं | इन योगों में शुभ कार्य करना वर्जित माना गया है |
करण : तिथि या मिति के अर्ध भाग को करण कहते हैं | एक तिथि में दो करण होते हैं कुल ११ करण होते हैं | इनमें
चार करण किन्सतुघ्न, शकुन, चतुष्पद, और नाग स्थिर होते हैं | बाकी शेष सात करणों (बालव, तैतिल, वणिज, बव, कौलव, गरज, और विष्टि ) की पूरे महीने में पुनरावर्ती होती रहती है | स्थिर करणों में पहला करण किन्शतुघ्न सबसे पहले शुक्लपक्ष की प्रतिपदा को आता है एवं बाकी तीन स्थिर करण शकुन कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी को, चतुष्पद कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को एवं नाग अमावस को आता है | ये चारों करण अशुभ माने जाते हैं | तथा आठवां करण विष्टि भी भद्रा होने के कारण अशुभ माना जाता है | विष्टि करण शुक्ल पक्ष की अष्टमी व् पूर्णिमा को दोपहर के पहले आता है एवं चतुर्थी व् एकादशी को दोपहर बाद के भाग में आता है | तथा कृष्ण पक्ष की सप्तमी व् चतुर्दशी को दोपहर के पहले आता है एवं तृतीया व् दशमी को दोपहर के बाद में आता है | कुल ११ करण निम्न प्रकार से हैं : १. किन्सतुघ्न २. बालव ३. तैतिल ४. वणिज ५. बव ६. कौलव ७. गरज ८. विष्टि ९. चतुष्पद १०. नाग ११. शकुन |
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