पंचांग  एवं कैलेण्डर  तथा उसके घटक :- 
सामान्यत: तिथियों को ५ पांच श्रेणियों  में बांटा  गया है |
१.  नंदा तिथि : दोनों पक्षों की प्रतिपदा , षष्ठी व्  एकादशी (१,६,११,) नंदा तिथि कहलाती है | तिथि  गंडांत काल /समय प्रथम घटी या शुरुआत के २४ मिनट को छोड़कर सभी मंगल कार्यों के लिए इन तिथियों को शुभ माना जाता है |
२.  भद्रा तिथि : दोनों पक्षों की द्वितीया, सप्तमी, व् द्वादशी (२,७,१२,) भद्रा तिथि  कहलाती है| व्रत,जप, ताप, दान-पुण्य, जैसे धार्मिक कार्यों के लिए ही शुभ मानी जाती है |
३.  जया तिथि : दोनों पक्षों की तृतीया, अष्टमी, व् त्रयोदशी (३,८,१३,) जया तिथि कहलाती है| गायन, वादन  जैसे शुभ कार्य ही किये जा सकते हैं |
४.  रिक्ता तिथि : दोनों पक्षों की चतुर्थी, नवमी,व् चतुर्दशी (४,९,१४,) रिक्ता तिथि कहलाती है | तीर्थ यात्राएँ, मेले आदि के लिए ठीक होती हैं |
५.  पूर्णा तिथि : दोनों पक्षों की पंचमी , दशमी, पूर्णिमा, और  अमावस (५,१०,१५,३०,) पूर्णा तिथि  कहलाती हैं | तिथि गंडांत काल  तिथि के अंतिम एक घटी या अंतिम २४ मिनट को छोड़कर सभी प्रकार के मंगल कार्यों के लिए ये तिथियाँ शुभ मानी जाती हैं |
ऋतु (Seasons) : वर्ष में कुल ६ ऋतुएँ होती हैं, एक ऋतु की अवधि दो मास की होती है | अलग – अलग ऋतुओं में अलग – अलग मौसम होता है ऋतुओं में मौसम एवं अवधि की समय सारिणी
क्र.  ऋतु    चंद्रमास अवधि        अंग्रेजी मास अवधि                   मौसम   
१. बसंत     चैत्र व् वैशाख                मध्य मार्च से मध्य मई                          सौम्य 
२. ग्रीष्म     ज्येष्ठ व् आषाढ़            मध्य मई से मध्य जुलाई                       तीव्र गर्मी
३. वर्षा        श्रावण व् भाद्रपद           मध्य जुलाई से मध्य सितम्बर              वर्षा वाला
४. शरद      आश्विन व् कार्तिक      मध्य सितम्बर से मध्य नवम्बर           अधिक ठण्ड
५. हेमंत       मार्गशीर्ष व् पौष          मध्य नवम्बर से मध्य जनवरी               हिमपात
६. शिशिर    माघ व् फाल्गुन           मध्य जनवरी से मध्य मार्च                     सौम्य
विशेष तिथियाँ :  उपरोक्त तिथियों में कुछ तिथियाँ विशेष कहलाती हैं | जिनमें  कुछ तिथियाँ अच्छी व् मंगलमय होती हैं एवं कुछ तिथियाँ अशुभ या शुभ कार्यों के लिए वर्जित होती हैं | ये तिथियाँ निम्न प्रकार से हैं :
१.  युगादि तिथियाँ :सतयुग प्रारम्भ तिथि – कार्तिक शुक्ल नवमी, त्रेतायुग प्रारम्भ तिथि – वैशाख शुक्ल तृतीया, द्वापरयुग प्रारम्भ तिथि – माघ कृष्ण पक्ष अमावस ,कलियुग प्रारम्भ तिथि – भाद्रपद कृष्ण पक्ष त्रयोदशी आदि तिथियाँ हैं |
२.  सिद्धा  तिथियाँ :  मंगलवार की ३,८, १३, तृतीया , अष्टमी, त्रयोदशी, बुधवार की  २,७, १२  द्वितीया, सप्तमी, द्वादशी, गुरूवार की ५,१०,१५, पंचमी, दशमी, पूर्णिमा, व् अमावस , शुक्रवार की १,६,११, प्रतिपदा, षष्ठी, एकादशी, और शनिवार की ४,९,१४, चतुर्थी, नवमी, चतुर्दशी , तिथियाँ सिद्धा तिथियाँ कहलाती हैं  तथा सभी कार्यों के लिए शुभ मानी जाती हैं |
३.  पर्व तिथियाँ : कृष्ण पक्ष की तीन तिथियाँ अष्टमी, चतुर्दशी, और अमावस  तथा शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि और संक्रान्ति  तिथि पर्व तिथि कहलाती हैं|इनको शुभ मुहूर्त के लिए छोड़ दिया जाता है |
४.  प्रदोष तिथियाँ : द्वादशी तिथी अर्धरात्रि पूर्व, षष्ठी तिथि रात्रि से ४ चार घंटा ३० तीस मिनट पूर्व, एवं तृतीया तिथि रात्रि से ३ तीन घंटा पूर्व समाप्त होने की स्थिति में प्रदोष तिथियाँ कहलाती हैं , इनमें सभी शुभ  कार्य वर्जित हैं |
५.  दग्धा , विष, हुताशन , तिथियाँ : दग्ध, विष, हुताशन, तिथियाँ क्रमशः  रविवार को १२,४, १२, सोमवार  को ११,६,६, मंगलवार को ५,७,७  बुधवार को ३,२,८, गुरूवार को  ६,८,९, शुक्रवार को  ८,९,१०, शनिवार को ९,७,११, होती हैं | उपरोक्त  सभी वारों में जो तिथियाँ आती हैं  वो क्रमशः दग्धा , विष, हुताशन  तिथियों में आती हैं | ये सभी तिथियाँ  अशुभ और  हानिकारक मानी जाती हैं |
६.  वृद्धि तिथि :  सूर्योदय के पूर्व प्रारम्भ  होकर अगले दिन सूर्योदय के बाद समाप्त होने वाली तिथि वृद्धि तिथि कहलाती है| इसे तिथि वृद्धि भी कहते हैं, सभी मुहूर्तों के लिए ये अशुभ होती है |
७.  क्षय तिथि : सूर्योदय के पश्चात प्रारम्भ  होकर अगले दिन सूर्योदय से पूर्व समाप्त होने वाली तिथि क्षय तिथि कहलाती है | इसे तिथि क्षय भी कहते हैं , ये तिथि भी सभी मुहूर्तों के लिए अशुभ होती है |
८.  गंड तिथि :  सभी पूर्णा तिथियों  ५,१०,१५,३०, यानी  पंचमी , दशमी, पूर्णिमा , अमावस  कि अंतिम एक घटी या २४ मिनट  तथा नंदा तिथियों १,६,११, यानी  प्रतिपदा , षष्ठी, एकादशी  की  प्रथम एक घटी या २४ मिनट  गंड तिथियों की श्रेणी में आती हैं | इन्हें  तिथि गंडांत भी कहते हैं | इन तिथियों की उक्त घटी अथवा २४ मिनट को सभी मुहूर्तों के लिए वर्जित माना  जाता है, अतः इस समय में कोई भी शुभ कार्य नहीं करना चाहिए |
 
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