पंचांग एवं कैलेण्डर तथा उसके घटक :-
समय : हमारे जीवन में समय का विशेष महत्व है | हम सभी समय के अनुसार ही कार्य करते हैं , प्रत्येक देश में मानक समय का प्रचलन है | यह एक विशेष रेखांश के अनुशार निश्चित होता है | भारत में ८२.५ अंश पूर्वी रेखांश के आधार पर मानक समय प्रमाणित है | मानक समय घंटा , मिनट, सेकंड, में होता है अतः समय कि गणना घंटा, मिनट, व् सेकंड में की जाती है | जन्म कुंडली बनाते समय ग्रह, नक्षत्र, योग, आदि की सही स्थिति हेतु काल या समय गणना का पूरा ध्यान रखा जाता है |
कैलेण्डर : विश्व में बहुत सारे कैलेण्डर विधमान हैं , जैसे कि भारतीय कैलेण्डर , इस्लामी कैलेण्डर , चाइनीज कैलेण्डर , ज्युईस कैलेण्डर , अंग्रेजी कैलेण्डर आदि | किन्तु सभी कैलेण्डर चन्द्र वर्ष से सम्बंधित व् प्रभावित हैं | विश्व की सभी गतिविधियों जैसे कि धार्मिक गतिविधि,कृषि गतिविधि, राजनैतिक गतिविधि, वित्त सम्बंधित गतिविधियाँ, कार्यालय गतिविधियाँ आदि में उपयोग किया जाता है | अभी चन्द्र-सौर कैलेण्डर उपयोग में लाये जाते हैं | भारतीय पंचांग सभी कैलेण्डरों में उत्तम है , इसमें लीप वर्ष के साथ-साथ पुरसोत्तम मास का भी प्रावधान किया गया है |
वर्ष : प्रथ्वी सूर्य का चक्कर ३६५ दिन व् ६ घंटे २४ मिनट में पूरा कर लेती है | इसके अनुसार १२ सौर मास अथवा ३६५ दिन ६ घंटे २४ मिनट का एक वर्ष होता है |अंग्रेजी महीनों अथवा सौर महीनों के अनुसार १२ महीने अथवा ३६५ दिन का एक वर्ष होता है | कैलेण्डर में १२ मास होते हैं , जिनमें से सात मास ३१ दिनों के होते हैं एवं चार मास ३० दिनों के होते हैं तथा फरवरी मास २८ दिन का तथा लीप वर्ष में २९ दिन का होता है | सौर मास राशि आधारित होते हैं अंग्रेजी कैलेण्डर वर्ष की तिथि १३ अप्रैल से शुरू होती है | सूर्यदेव तिथि १३ अप्रैल को मेष राशि में प्रवेश करते हैं इसको मेष की संक्रांति कहते हैं | इस तिथि या संक्रांति से मेष सौरमास प्रारम्भ होता है और अगली संक्रान्ति तक रहता है | अगली संक्रान्ति वृष के आने पर वृष सौर मास प्रारम्भ हो जाता है इस प्रकार संक्रान्ति बदलने पर सौर मास बदल जाता है | एक सौर मास की अवधि ३० से ३१ दिन की होती है | मासों के नाम इस प्रकार से हैं : जनवरी, फरवरी, मार्च, अप्रैल, मई, जून, जुलाई, अगस्त, सितम्बर, अक्टूबर, नवम्बर, दिसंबर, हैं | भारतीय पंचांग के अनुसार चन्द्र प्रथ्वी के ३५४ दिनों में १२ चक्कर लगाता है | चन्द्र का एक चक्कर एक चन्द्र मास कहलाता है अतः वर्ष में १२ चन्द्र मास होते हैं | पूर्णिमा के दिन पूर्ण चन्द्र दिखाई देता है इसके आधार पर प्रत्येक पूर्णिमा को पड़ने वाले नक्षत्र के नाम से चन्द्र मासों का नामकरण किया गया है | चैत्र मास का नाम पूर्णिमा को पड़ने वाले चित्रा नक्षत्र के अनुसार चैत्र मास रखा गया है | वैशाख मास का नाम वैशाख मास की पूर्णिमा को पड़ने वाले नक्षत्र विशाखा के नाम के अनुसार वैशाख मास रखा गया है | एक चन्द्र मास की अवधि २७ से २९ दिन की होती है |
मास या महिना : भारतीय पंचांग के अनुसार एक मास में तीस तिथि या मिति एवं दो पक्ष होते हैं १. शुक्ल पक्ष व् २. कृष्ण पक्ष एवं एक पक्ष में १५ दिन होते हैं तथा अलग – अलग १५ तिथियाँ होती हैं | पूर्णिमा को १५ वीं तिथि तथा अमावस को ३० वीं तिथि माना जाता है | कभी – कभी तिथि घट या बढ़ भी जाती है यह चन्द्र वर्ष और सौर वर्ष के बीच ११ दिन के अंतर के कारण होता है | परिणामस्वरूप चन्द्र वर्ष में प्रति तीसरे वर्ष एक मास की वृद्धि होजाती है जिसे अधिक मास या पुरसोत्तम मास कहते हैं | पुरसोत्तम मास में धार्मिक कार्य अधिक किये जाते हैं | कैलेण्डर की सभी तिथियाँ प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से सूर्य, चन्द्र, मंगल, बुध, गुरु, शुक्र, शनि, ग्रहों से प्रभावित होती हैं |
ग्रहों की संख्या के अनुसार अलग – अलग तिथियाँ अलग – अलग ग्रहों से निम्न प्रकार से प्रभावित होती हैं :-
१. सूर्य से प्रभावित तिथियाँ —- १, १०, १९, २८ और ४, १३, २२, ३१ आदि तिथियाँ |
२. चन्द्र से प्रभावित तिथियाँ —- २, ११, २०, २९, और ७, १६, २५, आदि तिथियाँ |
३. मंगल से प्रभावित तिथियाँ —- ९, १८, २७ आदि तिथियाँ |
४. बुध से प्रभावित तिथियाँ —- ५, १४, २३, आदि तिथियाँ |
५. गुरु से प्रभावित तिथियाँ —- २, १२, २१, २३, आदि तिथियाँ |
६. शुक्र से प्रभावित तिथियाँ —- ६, १५, २४, आदि तिथियाँ |
७. शनि से प्रभावित तिथियाँ —- ८, १७, २६, आदि तिथियाँ |
सूर्य संक्रान्ति , तिथि, पक्ष, एवं नक्षत्र, के आधार पर मास की चार श्रेणियां होती हैं |
१. सौरमास : सूर्य के निरयण राशि प्रवेश अर्थार्त एक संक्रान्ति से दूसरी संक्रान्ति तक की समयावधि को सौरमास कहा गया है , ये राशि आधारित होते हैं | सौरमास १३ अप्रैल से शुरू होते हैं |
२. चंद्रमास : अमावस से अमावस तक की समयावधि को शुक्ल चंद्रमास तथा पूर्णिमा से पूर्णिमा तक की समयावधि को कृष्ण चंद्रमास कहा जाता है |
३. सावन मास : एकसूर्योदय से दुसरे सूर्योदय तक की ३० तिथियों को मिलकर एक सावन मास बनता है |
४. नक्षत्र मास : एक नक्षत्र से सत्ताईसवें नक्षत्र की समयावधि को नक्षत्र मास कहते हैं | इस अवधि में धार्मिक कार्य आदि करना शुभ माना जाता है |
संक्रांति : प्रत्येक मास में एक तिथि को सूर्य की ऐसी स्थिति होती है जब वह एक राशि छोड़कर अगली राशि में प्रवेश करता है सूर्य की दूसरी राशि में इस प्रवेश तिथि को ही संक्रान्ति या सूर्य संक्रान्ति कहते हैं | मकर की संक्रान्ति से सूर्य उत्तरायण एवं कर्क की संक्रान्ति आने पर सूर्य दक्षिणायण होता है |
शुक्ल चंद्रमास में दो सूर्य संक्रान्ति आ जाती हैं तो उसे क्षय मास कहा जाता है तथा जिस मास में कोई भी सूर्य संक्रान्ति नहीं आती है वह अधिकमास या पुरसोत्तम मास कहलाता है | इन महीनों में धार्मिक कार्य , व्रत, जप,ताप, पूजापाठ,तीर्थ यात्रा,आदि अधिक किये जाते हैं , एवं इनको शुभ माना जाता है |
चन्द्र तिथि : चन्द्रमा की एक कला को तिथि या मिति कहते हैं | एक चन्द्र तिथि या मिति १२ अंश की होती है | अमावस के बाद प्रतिपदा से पूर्णिमा तक की तिथियाँ शुक्ल पक्ष की एवं पूर्णिमा के बाद प्रतिपदा से अमावस तक की तिथियां शुक्ल पक्ष की होती हैं |
समय : हमारे जीवन में समय का विशेष महत्व है | हम सभी समय के अनुसार ही कार्य करते हैं , प्रत्येक देश में मानक समय का प्रचलन है | यह एक विशेष रेखांश के अनुशार निश्चित होता है | भारत में ८२.५ अंश पूर्वी रेखांश के आधार पर मानक समय प्रमाणित है | मानक समय घंटा , मिनट, सेकंड, में होता है अतः समय कि गणना घंटा, मिनट, व् सेकंड में की जाती है | जन्म कुंडली बनाते समय ग्रह, नक्षत्र, योग, आदि की सही स्थिति हेतु काल या समय गणना का पूरा ध्यान रखा जाता है |
कैलेण्डर : विश्व में बहुत सारे कैलेण्डर विधमान हैं , जैसे कि भारतीय कैलेण्डर , इस्लामी कैलेण्डर , चाइनीज कैलेण्डर , ज्युईस कैलेण्डर , अंग्रेजी कैलेण्डर आदि | किन्तु सभी कैलेण्डर चन्द्र वर्ष से सम्बंधित व् प्रभावित हैं | विश्व की सभी गतिविधियों जैसे कि धार्मिक गतिविधि,कृषि गतिविधि, राजनैतिक गतिविधि, वित्त सम्बंधित गतिविधियाँ, कार्यालय गतिविधियाँ आदि में उपयोग किया जाता है | अभी चन्द्र-सौर कैलेण्डर उपयोग में लाये जाते हैं | भारतीय पंचांग सभी कैलेण्डरों में उत्तम है , इसमें लीप वर्ष के साथ-साथ पुरसोत्तम मास का भी प्रावधान किया गया है |
वर्ष : प्रथ्वी सूर्य का चक्कर ३६५ दिन व् ६ घंटे २४ मिनट में पूरा कर लेती है | इसके अनुसार १२ सौर मास अथवा ३६५ दिन ६ घंटे २४ मिनट का एक वर्ष होता है |अंग्रेजी महीनों अथवा सौर महीनों के अनुसार १२ महीने अथवा ३६५ दिन का एक वर्ष होता है | कैलेण्डर में १२ मास होते हैं , जिनमें से सात मास ३१ दिनों के होते हैं एवं चार मास ३० दिनों के होते हैं तथा फरवरी मास २८ दिन का तथा लीप वर्ष में २९ दिन का होता है | सौर मास राशि आधारित होते हैं अंग्रेजी कैलेण्डर वर्ष की तिथि १३ अप्रैल से शुरू होती है | सूर्यदेव तिथि १३ अप्रैल को मेष राशि में प्रवेश करते हैं इसको मेष की संक्रांति कहते हैं | इस तिथि या संक्रांति से मेष सौरमास प्रारम्भ होता है और अगली संक्रान्ति तक रहता है | अगली संक्रान्ति वृष के आने पर वृष सौर मास प्रारम्भ हो जाता है इस प्रकार संक्रान्ति बदलने पर सौर मास बदल जाता है | एक सौर मास की अवधि ३० से ३१ दिन की होती है | मासों के नाम इस प्रकार से हैं : जनवरी, फरवरी, मार्च, अप्रैल, मई, जून, जुलाई, अगस्त, सितम्बर, अक्टूबर, नवम्बर, दिसंबर, हैं | भारतीय पंचांग के अनुसार चन्द्र प्रथ्वी के ३५४ दिनों में १२ चक्कर लगाता है | चन्द्र का एक चक्कर एक चन्द्र मास कहलाता है अतः वर्ष में १२ चन्द्र मास होते हैं | पूर्णिमा के दिन पूर्ण चन्द्र दिखाई देता है इसके आधार पर प्रत्येक पूर्णिमा को पड़ने वाले नक्षत्र के नाम से चन्द्र मासों का नामकरण किया गया है | चैत्र मास का नाम पूर्णिमा को पड़ने वाले चित्रा नक्षत्र के अनुसार चैत्र मास रखा गया है | वैशाख मास का नाम वैशाख मास की पूर्णिमा को पड़ने वाले नक्षत्र विशाखा के नाम के अनुसार वैशाख मास रखा गया है | एक चन्द्र मास की अवधि २७ से २९ दिन की होती है |
मास या महिना : भारतीय पंचांग के अनुसार एक मास में तीस तिथि या मिति एवं दो पक्ष होते हैं १. शुक्ल पक्ष व् २. कृष्ण पक्ष एवं एक पक्ष में १५ दिन होते हैं तथा अलग – अलग १५ तिथियाँ होती हैं | पूर्णिमा को १५ वीं तिथि तथा अमावस को ३० वीं तिथि माना जाता है | कभी – कभी तिथि घट या बढ़ भी जाती है यह चन्द्र वर्ष और सौर वर्ष के बीच ११ दिन के अंतर के कारण होता है | परिणामस्वरूप चन्द्र वर्ष में प्रति तीसरे वर्ष एक मास की वृद्धि होजाती है जिसे अधिक मास या पुरसोत्तम मास कहते हैं | पुरसोत्तम मास में धार्मिक कार्य अधिक किये जाते हैं | कैलेण्डर की सभी तिथियाँ प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से सूर्य, चन्द्र, मंगल, बुध, गुरु, शुक्र, शनि, ग्रहों से प्रभावित होती हैं |
ग्रहों की संख्या के अनुसार अलग – अलग तिथियाँ अलग – अलग ग्रहों से निम्न प्रकार से प्रभावित होती हैं :-
१. सूर्य से प्रभावित तिथियाँ —- १, १०, १९, २८ और ४, १३, २२, ३१ आदि तिथियाँ |
२. चन्द्र से प्रभावित तिथियाँ —- २, ११, २०, २९, और ७, १६, २५, आदि तिथियाँ |
३. मंगल से प्रभावित तिथियाँ —- ९, १८, २७ आदि तिथियाँ |
४. बुध से प्रभावित तिथियाँ —- ५, १४, २३, आदि तिथियाँ |
५. गुरु से प्रभावित तिथियाँ —- २, १२, २१, २३, आदि तिथियाँ |
६. शुक्र से प्रभावित तिथियाँ —- ६, १५, २४, आदि तिथियाँ |
७. शनि से प्रभावित तिथियाँ —- ८, १७, २६, आदि तिथियाँ |
सूर्य संक्रान्ति , तिथि, पक्ष, एवं नक्षत्र, के आधार पर मास की चार श्रेणियां होती हैं |
१. सौरमास : सूर्य के निरयण राशि प्रवेश अर्थार्त एक संक्रान्ति से दूसरी संक्रान्ति तक की समयावधि को सौरमास कहा गया है , ये राशि आधारित होते हैं | सौरमास १३ अप्रैल से शुरू होते हैं |
२. चंद्रमास : अमावस से अमावस तक की समयावधि को शुक्ल चंद्रमास तथा पूर्णिमा से पूर्णिमा तक की समयावधि को कृष्ण चंद्रमास कहा जाता है |
३. सावन मास : एकसूर्योदय से दुसरे सूर्योदय तक की ३० तिथियों को मिलकर एक सावन मास बनता है |
४. नक्षत्र मास : एक नक्षत्र से सत्ताईसवें नक्षत्र की समयावधि को नक्षत्र मास कहते हैं | इस अवधि में धार्मिक कार्य आदि करना शुभ माना जाता है |
संक्रांति : प्रत्येक मास में एक तिथि को सूर्य की ऐसी स्थिति होती है जब वह एक राशि छोड़कर अगली राशि में प्रवेश करता है सूर्य की दूसरी राशि में इस प्रवेश तिथि को ही संक्रान्ति या सूर्य संक्रान्ति कहते हैं | मकर की संक्रान्ति से सूर्य उत्तरायण एवं कर्क की संक्रान्ति आने पर सूर्य दक्षिणायण होता है |
शुक्ल चंद्रमास में दो सूर्य संक्रान्ति आ जाती हैं तो उसे क्षय मास कहा जाता है तथा जिस मास में कोई भी सूर्य संक्रान्ति नहीं आती है वह अधिकमास या पुरसोत्तम मास कहलाता है | इन महीनों में धार्मिक कार्य , व्रत, जप,ताप, पूजापाठ,तीर्थ यात्रा,आदि अधिक किये जाते हैं , एवं इनको शुभ माना जाता है |
चन्द्र तिथि : चन्द्रमा की एक कला को तिथि या मिति कहते हैं | एक चन्द्र तिथि या मिति १२ अंश की होती है | अमावस के बाद प्रतिपदा से पूर्णिमा तक की तिथियाँ शुक्ल पक्ष की एवं पूर्णिमा के बाद प्रतिपदा से अमावस तक की तिथियां शुक्ल पक्ष की होती हैं |