धर्मं :- धर्म शब्द संस्कृत की ‘धृ’ धातु से बना है जिसका अर्थ होता है धारण करना अथार्त किसी भी नियम कर्म आदि की धारण करना या पालन करना । परमात्मा की सृष्टि को बनाये रखने के लिए जो कर्म और नियम आवश्यक हैं वही मूलत: धर्म के अंग या लक्षण हैं । धीरज रखना, क्षमा करना, आंतरिक सफाई, उत्तम विचार , उत्तम ज्ञान प्राप्त करना , सत्य का पालन करना तथा अपनी सभी इन्द्रियों को काबू में रखना , मन में बुरे विचारों को नहीं आने देना , चोरी नहीं करना, किसी को भी बुरी नजर से नहीं देखना , क्रोध नहीं करना आदि ये सभी कर्म धर्म के स्तम्भ हैं । अहिंसा सबसे उत्तम धर्म है, इसलिए मनुष्य को किसी भी प्राणी की हिंसा नहीं करनी चाहिए । मनुष्य को सदैव दूसरों पर दया करनी चाहिए । जिस समाज में एकता है, सुमति है, वहाँ शान्ति है, समृद्धि है, सुख है, और जहाँ स्वार्थ की प्रधानता है वहाँ कलह है, संघर्ष है, बिखराव है, दु:ख है, तृष्णा है । हमको हमेशा धर्मं सम्मत कार्य अपने देश काल एवं परिस्थिति को देखते हुए करने चाहिए |मानव को केवल धन संग्रह को ही अपना कर्तव्य नहीं समझना चाहिए | संसार में अनेकों विविधताएँ पाई जाती हैं , इसी प्रकार से विश्व में स्थान, देश, प्रान्त, महादीप आदि में अलग अलग धर्मों को मानने वाले लोग रहते हैं | लेकिन सभी धर्मों का एक सूत्र मानवता का धर्म सर्वोपरि है | अलग – अलग देशों में अलग – अलग धर्मों को माना जाता है जैसे की , हिन्दू धर्मं , बौद्ध धर्मं, ईसाई धर्म , इस्लाम धर्म, जैन धर्म, सिख धर्म, पारसी धर्म, एवं और भी अनेकों धर्म | सभी धर्मों में ईश्वर को अनेकों रूपों में माना जाता है मगर सबका केवल एक ही है एक सर्व शक्तिमान शक्ति जो पूरे विश्व को संचालित कर रही है | उसी सर्वशक्तिमान शक्ति को सभी लोग अलग अलग नामों एवं रूपों में पूजते एवं मानते हैं | उसी सर्वशक्तिमान शक्ति को मानते हुए सभी लोग अपने अपने धर्मों की मर्यादाओं का पालन करते हैं |
कुछ धर्मं निम्नांकित हैं :-